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Home उत्तराखण्ड

सिर्फ रिद्धि-सिद्धि के दाता ही नहीं बल्कि लेखन कला के देव भी हैं गणपत्ति बप्पा

News Desk by News Desk
September 14, 2021
in उत्तराखण्ड, शिक्षा, संस्कृति
सिर्फ रिद्धि-सिद्धि के दाता ही नहीं बल्कि लेखन कला के देव भी हैं गणपत्ति बप्पा
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गणपति जी सिर्फ रिद्धि-सिद्धि के दाता ही नहीं बल्कि लेखन कला के देव भी हैं। इसलिए अगर आप लेखन कौशल में आगे बढ़ना चाहते हैं तो गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। भगवान गणपति ने ही पौराणिक कथाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए महर्षि वेदव्यास के कहने पर महाभारत को सरल भाषा में लिपिबद्ध किया था। साथ ही जिस जगह महाभारत लिखी गई वो गुफा और जगह आज भी उत्तराखंड में मौजूद है। मान्यता है कि महाभारत को लिखने का काम तकरीबन 3 साल में पूरा हुआ था। इस तरह दोनों ही विद्वान जन एक साथ आमने-सामने बैठकर अपनी भूमिका निभाने में लग गए और महाभारत की कथा लिपिबद्ध होने लगी। महर्षि व्यास ने बहुत अधिक गति से बोलना शुरू किया और उसी गति से भगवान गणेश ने महाकाव्य को लिखना जारी रखा। वहीं ऋषि भी समझ गए कि गजानन की त्वरित बुद्धि और लगन का कोई मुकाबला नहीं है। मान्यता है कि इस महाकाव्य को पूरा होने में तकरीबन तीन साल का वक्त लगा था। इस दौरान गणेश जी ने एक बार भी ऋषि को एक क्षण के लिए भी बोलने से नहीं रोकाए वहीं महर्षि ने भी शर्त पूरी की। महर्षि वेद व्यास ने वेदों को सरल भाषा में लिखा था जिससे सामान्य जन भी वेदों का अध्ययन कर सकें। उन्होंने 18 पुराणों की भी रचना की थी। कहा जाता है श्रीगणेश ने पूरी महाभारत कथा उत्तराखंड में मौजूद मांणा गांव की एक गुफा में लिखी थी, जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। इस गुफा में व्यास जी ने अपना बहुत सारा समय बीताया था और महाभारत समेत कई पुराणों की रचना की थी। व्यास गुफा को बाहर से देखकर ऐसा लगता है मानों कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हों, इसलिए इसे व्यास पोथी भी कहते हैं। भगवान गणेश ने ब्रह्मा द्वारा निर्देशित काव्य महाभारत को विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य कहलाने का वरदान दिया, जिसे लिपिबद्ध स्वयं उन्होंने किया था। श्रुतलेखन का अर्थ है किसी की कही गई बात को सुनकर लिखना। यही नहीं अभी भी स्कूलों में श्रुतलेखन से बच्चों की लिखावट सुधारने में किया जाता है। उस समय व्यास जी के कहने पर भगवान गणेशजी श्रुतलेखन के लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि व्यासजी को बिना रुके पूरी कथा कहनी होगी। व्यासजी ने इसे मान लिया और गणेश जी से अनुरोध किया कि वे भी मात्र अर्थपूर्ण और सत्य बातें, समझ कर ही लिखें। पौराणिक उल्लेख मिलता है कि व्यासजी जो भी श्लोक बोलते थेए गणेश जी उसे बड़ी तीव्रता से लिख लेते थे। गणेश जी और व्यास जी द्वारा महाभारत कथा लिखे जाने के बारे में पौराणिक कथाएं भी हैं। जब ब्रह्मा ने वेदव्यास को महाभारत लिखने का अनुरोध किया, तो व्यास जी ने ऐसे कुशल लेखक का विचार किया जो उनकी कथा को सुन कर उसे लिखता जाए। तब बहुत सोच-विचार करने के बाद प्रथम पूज्य भगवान गणेश का स्मरण आया क्योंकि उनसे उचित और कोई नहीं थे जो व्यास जी की कही कथा को पूरी कुशलता से लिख पाते। अतः श्रुतलेखन के लिए व्यास जी ने बगैर देर किए भगवान गणेश से संपर्क कर अनुरोध किया ।

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