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उत्तराखंड मिशन 2022 : भारत निर्वाचन आयोग के चुनावी रैली पर रोक से सियासी दलों को सोशल मीडिया का लेना पड़ेगा सहारा

admin by admin
January 11, 2022
in उत्तराखण्ड, उधम सिंह नगर, देश, राजनीति, रुद्रपुर, स्वास्थ्य
उत्तराखंड मिशन 2022 : भारत निर्वाचन आयोग के चुनावी रैली पर रोक से सियासी दलों को सोशल मीडिया का लेना पड़ेगा सहारा
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देश में कोरोना काल ने पिछले दो साल में खरीददारी से लेकर पढ़ाई का तरीका बदल दिया है। अब बारी चुनाव प्रचार की है। संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव में रैली, जनसभा, नुक्कड़ सभाओं पर प्रतिबंध लगाया है। ऐसे में राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को चुनावी रण में डोर-टू-डोर कैंपेन की नई चुनौती से गुजरना होगा। पार्टियों ने इसका खाका तैयार करना भी शुरू कर दिया है।

उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने इस बार कोरोना के चलते नई गाइडलाइन तय की है। नये नियमों के तहत राजनीतिक दलों को सार्वजनिक सभाएं और रैलियां न कर मतदाताओं से वर्चुअली संपर्क साधने को कहा गया है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में अपनी जीत तय करने के लिए राजनैतिक दलों और नेताओं की सोशल मीडिया पर निर्भरता बढ़ गई है। रैली, जनसभा और रोड शो पर रोक की वजह से सभी को डिजिटल वार की तैयारी करनी पड़ रही है। मौके की नजाकत को समझते हुए आईटी एक्सपट्र्स ने भी डिजिटल इलेक्शन कैम्पेन के रेट बढ़ा दिए हैं।चुनावी सभाओं पर चुनाव आयोग की रोक के बाद सोशल मीडिया पर ऑफरों की भरमार आ गई है। आईटी एक्सपट्र्स, सोशल प्लेटफार्म पर पेज के फॉलोअर बढ़ाने के साथ पेज और पोस्ट को बूस्ट करने यानी उसकी पहुंच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बनाने के दावे कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने वाले सभी नेता अपनी बात को आमजन तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। फेसबुक पर पोस्ट बूस्ट करने के लिए 400 रुपये में 758 से लेकर 2200 लोगों तक आपकी पहुंच बनाने का ऑफर दिया जा रहा है। यह ऑफर पांच दिन लिए है। 20 हजार रुपये में पांच दिन में ही 37 हजार से 1.10 लाख तक पोस्ट पहुंचा दी जाएगी।

बड़े से बड़ा नेता और राजनीतिक दल भी रुपये देकर अपने प्रचार-प्रसार की पहुंच व्यापक बनाने के लिए सोशल मीडिया एक्सपट्र्स व आईटी एक्सपट्र्स की मदद ले रहे हैं। हालांकि तमाम बड़े राजनीतिक दलों के अपने सोशल मीडिया सेल भी हैं और जिन पार्टियों के सोशल मीडिया सेल नहीं हैं, उन्होंने टीम बनानी शुरू कर दी है। छोटे दल, प्रत्याशी और दावेदार अपने स्तर पर भी प्राइवेट आईटी प्रोफेशनल्स को हायर कर रहे हैं। उधर, सोशल मीडिया एक्सपट्र्स व आईटी एक्सपट्र्स भी इस मौके का लाभ उठाना चाहते हैं। वे नेताओं और दलों को तरह-तरह के ऑफर दे रहे हैं। राज्य में कई नेताओं और पार्टियों ने इसके लिए एक्सपर्ट की सेवाएं लेना शुरू कर दिया है।

सोशल मीडिया पर प्रचार के रेट रैलियों पर रोक के बाद दोगुना तक बढ़ गए हैं। हालांकि इसके रेट आामतौर पर कैम्पेन साइज पर निर्भर करते हैं। कई प्रत्याशियों के लिए कैम्पेन कर रहे प्रशांत राजपूत बताते हैं कि अलग-अलग काम के अलग-अलग रेट हैं। लेकिन यह कहा जा सकता है कि इस समय रेट पहले के मुकाबले बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य तौर पर एक फेसबुक पेज से प्रचार, पहले एक दिन में 10 से 15 हजार रुपये में होता था लेकिन अब एक दिन का रेट 20 से 30 हजार के करीब है। इसी तरह अन्य माध्यमों से प्रचार के रेट भी बढ़ गए हैं। फेसबुक, यूट्यूब और गूगल के लिए वीडियो या क्रिएटिव्स बनाने वालों ने भी अपनी कीमत बढ़ा दी है।

सोशल मीडिया और डिजिटल प्रचार की वजह से विधानसभा वार मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी की डिमांड बढ़ रही है। बाजार में तमाम ऐसे प्रोफेशनल्स हैं जिनके पास विधानसभावार लोगों के मोबाइल नंबर और मेल आईडी आदि हैं। इसकी मनमानी कीमत है। हालांकि अधिकांश प्रोफेशनल्स केवल डेटा नहीं बेचते बल्कि वे प्रत्याशी, पार्टी या दावेदार का पूरा कैम्पेन बुक कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए इस समय है उनमें फेसबुक पेज, ओबीडी कॉलिंग, बल्क एसएमएस, यूट्यूब चैनल, गूगल एड और वाट्सएप मैसेज की सबसे अधिक डिमांड है। दावेदार सोशल मीडिया के हर माध्यम पर मजबूत उपस्थिति चाहते हैं। वे वोटरों तक पहुंचने के लिए सभी तरीके यूज कर रहे हैं।

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