गुलाम देश में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के शुभ मौके पर भारत को ऐसे जख्म मिले जो आज आजादी के बाद और घटना के 103 साल के बाद भी नहीं भुलाया जा सकता है। आज हम आपको गुलाम भारत की ऐसा दास्तां बताने वाले हैं जिसे गुजरे सालों हो गए हैं लेकिन आजादी पाने के लिए हमारे पूर्वजों ने क्या संघर्ष किया हैं यह हमें बताता है यह कहानी अंग्रेजी हुकूमत की भारत के आम लोगों पर किए गए सबसे बड़े अत्याचारों में से एक की है बैसाखी के दिन यानी 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। आज यानी 13 अप्रैल 2022 को इस हत्याकांड को पूरे 103 साल हो गए हैं. इस दिन को हर भारतीय शहादत के दिन के रूप में देखता है आज के दिन पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में खून की नदियां बह गई थी। यह नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास का एक काला अध्याय है।
तो चलिए जानते हैं जलियांवाला बाग नरसंहार के इतिहास के बारे में-
13 अप्रैल को जलियांवाला बाग नरसंहार की 103 वीं बरसी है। देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के साथ दर्ज है। वह वर्ष 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। ये सभी जलियांवाला बाग में रौलट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे।पंजाब राज्य के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग नाम के इस बगीचे में अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं। निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए।
देश के पंजाब अमृतसर में एक जगह का नाम है जलियांवाला बाग। बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे तभी डायर ने बाग से निकलने के सारे रास्ते बंद करवा दिए। बाग में जाने का जो एक रास्ता खुला था जनरल डायर ने उस रास्ते पर हथियारबंद गाड़ियां खड़ी करवा दी थीं। डायर करीब 100 सिपाहियों के सीथ बाग के गेट तक पहुंचा। उसके करीब 50 सिपाहियों के पास बंदूकें थीं। वहां पहुंचकर बिना किसी चेतावनी के उसने गोलियां चलवानी शुरु कर दी। गोलीबारी से डरे मासूम बाग में स्थित एक कुएं में कूदने लगे। गोलीबारी के बाद कुएं से 200 से ज्यादा शव बरामद हुए थे।अंग्रेजों ने केवल 10 मिनट के भीतर करीब 1650 राउंड गोलियां चलाई थी। इन गोलियां से बचने के लिए लोग बाग में बने कुएं में कूद गए थे थोड़ी ही देर में यह कुआ लाशों से भर गया वैसे तो आज भी जलियांवाला बाग नरसंहार में कितने लोग शहीद हुए है इसका सही आंकड़ा मौजूद नहीं है.लेकिन डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों का नाम दर्ज है अंग्रेजी सरकार के डॉक्यूमेंट्स में 379 लोगों मृत्यु हुई थी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. लेकिन, अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार करीब 1000 लोग शहीद हुए थे और 2000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
इस घटना के प्रतिघात स्वरूप सरदार उधमसिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ ड्वायर को गोली चला के मार डाला। उन्हें 31 जुलाई 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।आपको बता दे जलियांवाला बाग हत्याकांड में उधम सिंह भी मौजूद थे। 21 साल के बाद साल 1940 में वह लंदन पहुंचे। यहां उन्होंने आम लोगों पर जलियांवाला बाग में गोला चलाने का आदेश देने वाले अंग्रेज अफसर जनरल डायर की गोली मारकर हत्या कर दी. लेकिन, बाद में लंदन की एक कोर्ट में उधम सिंह को फांसी की सजा दे दी. इस फांसी के बाद भारत में आजादी की लड़ाई और तेज हो गई और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया