रुद्रपुर: 26 अप्रैल 2024 शुक्रवार/ तपस विश्वास
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स्कूलों में एक अप्रैल से नए सत्र की शुरुआत हो गई। अभिभावक अपने बच्चों के लिए किताबें, बैग और ड्रेस की तैयारियों में जुटे हैं। अभिभावकों का कहना है कि निजी स्कूल हर बार की तरह बाहरी प्रकाशकों की महंगी किताबें लगवा रहे हैं। ऐसे में अभिवावकों की जेब पर सीधा असर पड़ रहा है। वे न चाहते हुए भी महंगी किताबें खरीदने को मजबूर हैं। उधर, जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारी मौन हैं। किताब विक्रेता अलग-अलग कक्षा के मुताबिक किताब और कॉपियों का सेट बनाकर रखे हुए हैं, जिनकी कीमत पांच हजार से आठ हजार रुपये तक बताई जा रही है। साथ ही स्कूल प्रबंधन की ओर से लगाई गई निजी प्रकाशकों की किताबें महानगर में चुनिंदा दुकानों पर ही उपलब्ध हैं।
स्कूलों में इन दिनों नए सेशन के लिए एडमिशन प्रक्रिया चल रही है और अभिभावक एडमिशन से लेकर कॉपी-किताबें और ड्रेस का इंतजाम करने में जुटे हुए हैं। ऐसे में निजी विद्यालयों की मनमानी के चलते अभिभावकों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन शिक्षा महकमे की मेहरबानी के निजी विद्यालयों और बुक सेलरों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं। दरअसल विद्यालयों द्वारा अभिभावकों को लिस्ट थमाकर सलेक्टेट दुकानों से ही किताबें लेने की बात कही जा रही है और किताबें भी इन्हीं बुक सेलरों के यहां मिलती हैं। दाखिला प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही पाठ्यक्रम में निजी प्रकाशकों की पुस्तकों को स्कूलों द्वारा लगाई जा रही हैं। जबकि नियम के अनुसार एनसीईआरटी की पुस्तक लगाने की तरफ निजी स्कूलों का रुझान बहुत कम है। सूत्रों की मानें तो निजी प्रकाशकों की ये पुस्तकें कमीशन के खेल से जुड़ी हैं, जिसकी वजह से इनके दाम भी एनसीईआरटी पुस्तकों से कई गुना ज्यादा वसूले जा रहे हैं। वहीं निजी स्कूलों की मनमानी के आगे शिक्षा अधिकारी सिर्फ अभी तक कार्यवाही करने की बात कर रहे है। वहीं स्कूलों को शिक्षा विभाग की तरफ से कक्षा पहली से पांचवीं और छठी से आठवीं और नौवीं से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए एनसीईआरटी की पाठ्यक्रम की पुस्तकों के साथ बस्ते का बोझ भी निर्धारित किया हुआ है। इस निर्धारित वजन से अधिक बच्चे की पीठ पर बोझ नहीं लादा जा सकता है। इसकी जांच के लिए बाकायदा शिक्षा विभाग के अधिकारियों की एक कमेटी भी बनाई हुई है। इसका काम निजी स्कूलों का औचक निरीक्षण कर बच्चों के बस्ते के अंदर पढ़ाई जा रही पुस्तकों की जांच करना भी है। अगर निजी प्रकाशकों की स्कूल के अंदर पुस्तकें मिलती है तो इसका स्पष्टीकरण भी उस स्कूल से मांगा जाता है फिर उस पर कार्रवाई भी बनती है। मगर यहां अभिभावक स्कूल द्वारा थमाई सूची लेकर चुनिंदा दुकानों के आगे लगी भीड़ में खड़े होकर अपनी जेब ढीली करा रहे हैं।
कुछ निजी स्कूलों की पुस्तक विक्रेताओं से भी सांठगांठ हो गई है। इसके बाद बच्चों के अभिभावकों को थमाई गई किताबों की सूची में दर्शायी गई किताबें भी किसी अन्य पुस्तक विक्रेता के पास नहीं मिल रही हैं, मजबूरी में अभिभावक को उसी दुकान से पुस्तकें खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है, जिसका नाम स्कूल ने सुझाया जाता है। ऐसे में कमीशनखोरी और सीना जोरी से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। अभिभावकों को एक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे के लिए एनसीईआरटी पाठ्यक्रम की सभी पुस्तकें किसी भी पुस्तक विक्रेता से मात्र 600 से 700 रुपये के साधारण मूल्य पर खरीद सकता है, मगर चुनिंदा पुस्तक विक्रेताओं की थमाई गई सूची में शामिल निजी प्रकाशकों की किताबें तीन से चार हजार रुपये में दी जा रही हैं। कुछ अभिभावक जब महंगी पुस्तकें खरीद करने पर विरोध जताते हैं तो उन्हें यह तर्क दिया जा रहा है कि ये पुस्तकें आपके बच्चे के लिए फायदेमंद रहेंगी, इन पुस्तकों में कुछ एक्सट्रा, रोचक तथ्य और जानकारी हैं जिन्हें बच्चा आसानी से पढ़ेगा और जल्दी सीखेगा। जबकि एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम पूरे रिसर्च और बच्चों के मनोस्थिति और उनके भविष्य को देखते हुए ही तैयार किया जाता है। निजी प्रकाश इन्हीं पुस्तकों की चीजों को तोड़ मरोड़ कर खुद की पुस्तकें बाजार में उतार कमीशनखोरी का काला धंधा स्कूल से मिलकर चलाते हैं।