रुद्रपुर: 27 अप्रैल 2024 शनिवार/ तपस विश्वास
खबर यूएस नगर की मुहिम जारी……………….
जनपद ऊधम सिंह नगर और विशेषकर रुद्रपुर में प्राइवेट स्कूल अब विद्यालय नहीं लूट की दूकान बन गए है। जहाँ किताबें बिकती है,कपड़े बिकते है,जूते बिकते है,मोजे बिकते है,ट्यूशन के मास्टर बिकते हैं,कुछ स्कूलों में धर्म भी बिकता है,और सबसे अंत में शिक्षा बिकती है। और ये सारे सामान लागत मूल्य से दस गुने मूल्य पर बेचे जाते है। नए शिक्षण सत्र की शुरूआत होते ही निजी स्कूलों ने अभिभावकों की जेब काटनी शुरू कर दी है। शिक्षा विभाग के आदेश के बाद एनसीईआरटी की किताबों की जगह स्कूल प्रबंधन जबरन अभिभावकों पर निजी प्रकाशकों की किताबों को खरीदने का दबाव बना रहे हैं। स्कूलों का इससे भी पेट नहीं भर रहा है, वह मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में स्कूल से कापी-किताबें बेच रहे हैं। जो स्कूल किताबें नहीं बेच रहे हैं उन्होंने अपनी दुकानें निर्धारित कर दी है। उसी दुकान पर ही उस स्कूल का पाठयक्रम मिलेगा। स्कूल की कापी-किताब से लेकर यूनीफार्म, टाई, बेल्ट तक पर मोटा कमीशन स्कूल प्रबंधन ले रहे हैं। तो वही इस पूरे कमीशन के खेल में जीएसटी की चोरी से सरकार को भी तगड़ा नुकसान हो रहा है।
अगर मशहूर संगीतकार आनंद बख़्शी जिंदा होते तो अपनी गीत की पंक्तियां पतझड़ सावन,बसंत बहार एक बरस के मौसम चार, पांचवां मौसम निजी स्कूलों में किताबें, कापी, जूते मोजे, टाई बेल्ट खरीदने का लिख रहे होते। इस देश में दो ही मौसम होते हैं जब मतदाता चुनाव के दौरान तो दूसरा अभिभावक स्कूलों के सत्र बदलने पर लूट के मौसम का शिकार होता है। वैसे निजी स्कूलों की शिक्षा धन्य है क्योंकि वे अब मणिपाल नहीं बल्कि मनी’पाल बनते जा रहे हैं। यह हकीकत है देश और प्रदेश भर के लगभग सभी निजी स्कूल शिक्षा के नाम पर लूट की दुकान चला रहे है,और अब ग्रामीण,गली मोहल्लों में खुले निजी स्कूल भी इसी राह पर चल रहे हैं। वैसे रुद्रपुर के लगभग सभी निजी स्कूलों की दशा कमोवेश वहीं है जो देश अन्य स्कूलों की है।
जनपद ऊधम सिंह नगर के रुद्रपुर में नये सत्र शुरु होते ही निजी स्कूल लूट की दुकानों में परिवर्तित हो जाते है। अगर कहें कि निजी स्कूल शिक्षा की जगह लोगों को लूटने की मशीन बनते जा रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नये सत्र की शुरुआत के साथ ही अभिभावकों की परेशानी बढ़ जाती है। एक से दो माह की फीस के साथ स्कूलों में विकास शुल्क के नाम पर ली जाने वाली मोटी रकम भरनी है तो दूसरी तरफ बच्चों के लिए ढेर सारी किताबें भी खरीदनी पड़ती है। जिससे अभिभावकों की कमर टूट रही है। कापी-किताबों का सेट इतना मंहगा हो चला है कि उसे खरीदने में इस अप्रैल महीने में और ज्यादा पसीना निकल रहा है। रुद्रपुर क्षेत्र के निजी स्कूलों में क्लास एक व आठवीं तक की किताबों का सेट स्कूलों के स्टैंडर्ड के हिसाब से चार हजार से छ: हजार रुपए तक आ रहें हैं। उपर से स्कूल बैग, डायरी, ड्रेस, टाई-बेल्ट तथा अन्य समान भी खरीदना पड़ रहा है। जिसकी राशि भी अच्छी खासी पड़ रही है। अधिकांश निजी स्कूलों के यहां किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों की एक लंबी लाइन देखी जा रही है। स्कूलों द्वारा तय निजी प्रकाशकों की किताबें पांच गुना तक मंहगा है। जितनी शायद बीए और एमए की किताबों के दाम नहीं होंगे। उधर प्रशासन और शिक्षा विभाग इस लूट पर चुप्पी साधे हुए है। तो वही इस पूरे खेल में जीएसटी की भी खुलकर चोरी हो रही है। जिससे सरकार को भो लाखों का चूना लग रहा है।
कहने को तो रुद्रपुर क्षेत्र के अधिकांश निजी स्कूल अपने आप को सीबीएसई पाठ्यक्रम से शिक्षा देने का दावा करती है लेकिन उनके यहां भी एनसीईआरटी की जगह ज्यादातर निजी प्रकाशकों की किताबें चलती है। लगभग 80 फीसदी निजी प्रकाशकों की मंहगी किताबें पढ़ाई जाती है। जबकि सरकार ने निर्देश जारी किया है कि सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाई जाएगी। पर शायद ही कोई निजी स्कूल इसका पालन करता हैं। स्कूलों में हर साल मिलने वाले कई किताबों में तो प्रिंट रेट रि ऊपर अलग से प्रिंट स्लिप चिपका कर प्रकाशित मूल्य से ज्यादा वसूल किया जाता है। निजी स्कूलों में कमीशन के चक्कर में हर साल किताबें बदलने के साथ अलग-अलग प्रकाशकों की मंहगी किताबें लगाई जाती है। वही एनसीईआरटी की 256 पन्नों की पुस्तक का मूल्य 65 रुपये है जबकि निजी प्रकाशक की 167 पन्ने की किताब की कीमत न्यूनतम 305 रुपये पड़ती है। एनसीईआरटी की किताबों में मात्र 15-20 फीसद ही कमीशन मिलता है। जबकि अन्य प्रकाशकों से 50-80 फीसद तक कमीशन मिलता है। अभिभावक भी अपने बच्चों के भविष्य के खातिर ज्यादा विरोध नहीं कर पाते हैं। वे जानते हैं कि क्षेत्र के लगभग निजी स्कूलों का शगूफा एक ही है। सब लूट में शामिल हैं। वही कमीशन के इस खेल में कॉफी किताब के विक्रेता भी जीएसटी चोरी कर सरकार को लाखों रुपये का चूना लगा रहे हैं।
वही अपने बच्चे के लिए किताब खरीदने आई एक बच्चे की मां ने बताया कि उनका बच्चा इस बार क्लास टू में गया है। उसके लगभग तीन हजार रुपए की किताब खरीदनी पड़ी। जबकि कुछ ऐसी किताबें हैं जो एक दो महीने में ही खत्म हो जाएगी। निजी स्कूलों में औसतन दस से पंद्रह किताबें चलाई जा रहीं है, बच्चों के बैग में ऊपर से कापियां, डायरी, पानी की बोतल, बॉक्स तथा अन्य सामग्री होती है। वजन इतना हो जाता है कि बच्चे उस बैग के बोझ तले दबे जा रहे हैं। उनकी रीढ़ झुक रही लेकिन अभिभावको को इसकी चिंता नहीं सता रही है। किसी ने सच कहा है कि एक समय सरकारी स्कूल छात्रों के भविष्य निर्माण में टूट गया और आज निजी स्कूलों को बनाने अभिभावक ।