रुद्रपुर। यहां बस स्टैंड के सामने रामलीला मैदान में आयोजित हो रही रामलीला के दौरान पात्रों ने अद्भुत मंचन से सभी का दिल जीत लिया। विगत दिवस राक्षसों की खरमस्तिया, मारीच सुबाहु का आतंक, विश्वामित्र के यज्ञ का विध्वंस, विश्वामित्र का दशरथ के पास जाना , ताड़का वध , सुबाहु वध, सीता स्वयंवर ,परशुराम लक्ष्मण संवाद तक की लीला का सुंदर व मनमोहक मंचन हुआ। इससे पूर्व आज की लीला का शुभारंभ नगर के समाजसेवी पूरन चंद्र गंभीर, राकेश गंभीर, आशीष गंभीर,सीए अमित गंभीर, कार्यक्रम अध्यक्ष समाजसेवी महेंद्र सिंह, दलजीत सिंह हन्नी, तरणजीत सिंह, प्रांजल गाबा, द्वारा किया गया। श्री रामलीला कमेटी कमेटी के पदाधिकारियों ने सभी अतिथिगणों का शाल ओढ़ाकर, माल्यार्पण कर एवं श्री रामचन्द्र जी की प्रतिमा भेंट कर स्वागत किया। सारथी फाउंडेशन ने भी अतिथिगणों को एक पौधा भेंट कर स्वागत किया। मुख्य अतिथि गंभीर परिवार की तरफ से सीए अमित गंभीर नें इस भव्य आयोजन के लिए कमेटी व रामनाटक क्लब के सदस्यों के अथक परिश्रम व सेवाभावना की। आयोजित रामलीला में सबसे पहले दृश्य में दिखाया गया इस घनघोर जंगलों में सुबाहु और मारीच का जबरदस्त आतंक छाया है। यह दानव आनें जानें वाले राहगीरों के साथ लूटमार करते है। यह दानव अपनें क्षेत्र में पूजा अर्चना कर रहे ऋषि विश्वामित्र का यज्ञ भी विध्वंस कर देते हैं। दुःखी राहगीर व क्रोधित विश्वामित्र अयोध्या में राजा दशरथ के दरबार में पहुंचते हैं। महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ से उनके राजकुमारों राम व लक्ष्मण को अपनें साथ भेजनें का आग्रह करते हैं। दशरथ दोनों राजकुमारों को विश्वामित्र के साथ भेजते हैं, जहाँ राम लक्ष्मण सुबाहु को मार डालते हैं, मारीच अपनी पीठ दिख कर भाग जाता है। इसके बाद महर्षि विश्वामित्र राम लक्ष्मण को ताड़का नामक राक्षसी से युद्ध हेतु ले जाते हैं, जहाँ दोनों राजकुमारों के हाथों ताड़का भी मारी जाती है। वनों में ही राम लक्ष्मण पत्थर रूप में अहिल्या को तारते हैं। इसके बाद महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को जनकपुरी में राजा जनक के राजदरबार में लेकर जाते हैं, जहाँ जनकपुरी की राजकुमारी सीता का स्वयम्बर आयोजित होता है। स्वयम्बर की शर्त यह होती है कि जो भी राजकुमार भगवान शिव के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से राजकुमारी का विवाह होगा। बड़े बड़े देशों के राजकुमार हार जाते हैं, इसी क्रम में जब लंकापति रावण भी वहां आकर स्वयम्बर में प्रतिभाग करना चाहता है, तभी बाणासुर उसको ललकार कर वापस जानें को विवश कर देता है। अंततः राजकुमार रामचंद्र जी स्वयम्बर में आकर शिव जी के धनुष को उठाते है और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास करते हैं। शिव धनुष टूट जाता है। राम जानकी का विवाह संपन्न होता है। इधर शिव धनुष टूटनें की टंकार तीनो लोको में गूँज उठती है। शिवभक्त परशुराम जनकपुरी पहुँच जाते हैं, वहां शिवधनुष टूटा देख क्रोधित हो उठते हैं। वहाँ उनका राम-लक्ष्मण से संवाद होता है लेकिन आखिरकार राम के तर्कों से उनका क्रोध शान्त हो जाता है और वो दोनों को आशीर्वाद देकर वहाँ से विदा होते हैं। लीला में भगवान गणेश का किरदार आशीष ग्रोवर आशु, राजा दशरथ प्रेम खुराना, महर्षि विश्वामित्र मोहन लाल भुड्डी, सुबाहु गौरव गाँधी, मारीच सचिन मुंजाल, गुरु वशिष्ठ मनोज मुन्जाल, ताड़का-अमन गुम्बर, छोटे राम- हर्षित अरोरा, छोटे लक्ष्मण- अवि चुघ , राम- मनोज अरोरा, लक्ष्मण- गौरव जग्गा, सीता- सुमित आनंद, अहिल्या- सुमित आंनद, परशुराम- गुरशरण बब्बर शरनी, रावण- रोहित नागपाल, ताड़का के रिश्तेदार- रामकृष्ण कन्नौजिया, गोला इदरीसी, कुक्कू शर्मा, गोगी नरूला, मनोज मुन्जाल, विशु अरोरा आदि थे।
तपस कुमार विश्वास
संपादक