जनपद ऊधम सिंह नगर के जिलामुख्यालय रुद्रपुर में स्कूलों की शह पर पुस्तक विक्रेता बेलगाम हो गए हैं। कॉपी व कवर सहित अन्य सामग्री नहीं लेने पर दुकानदार किताब देने से इंकार कर रहे हैं। इसलिए किताबों का पूरा सेट लेने को अभिभावक मजबूर हैं। स्कूलों द्वारा तय दुकानों पर किताबें मिलना कमीशनखोरी में संलिप्ताा को दर्शाता है।
मौजूदा वक्त में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर भारी लूट मची हुई है। खुद को साफ सुथरा छवि के संचालक मानने वाले इन स्कूलों के जिम्मेदार कमीशन के आगे शासन के निर्देश को रद्दी टोकरी में डालकर मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। स्कूल संचालकों के आगे मजबूर अभिभावक पुस्तक विक्रेता के हाथों लुटने को मजबूर हैं। भाजपा,कांग्रेस और रसूखदार स्कूल संचालकों के आगे जिला प्रशासन व शिक्षा अधिकारी भी चुप्पी साधकर बैठे हैं। जानकर हैरानी होगी कि प्राइवेट पब्लिकेशन की पुस्तकों में दुकानदार एक भी रुपए की छूट नहीं दे रहे हैं। इसके अलावा खरीदी गई पुस्तक यदि वापस करना चाह रहे हैं तो दुकानदार तीखी आवाज में बोलकर वापस करने से इंकार कर देते हैं। अभिभावकों की जेब पर कैंची चलाने वाले निजी स्कूल संचालकों की मनमानी पर एक बार भी जिम्मेदार अधिकारियों ने पूछताज जरूरत नहीं समझी। यदि प्राइवेट पब्लिकेशन की पुस्तकों की जहग एनसीइआरटी की पुस्तकें नहीं चलाई जा रही हैं तो आला अधिकारियों ने निजी स्कूलों के रसूख संचालकों को नोटिस जारी क्यों नहीं किया। एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। उचित नहीं समझे तो फिर इससे यह साबित होता है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों की भी संचालकों के साथ मिलीभगत है।
नया शैक्षिक सत्र शुरू होते ही किताबों की दुकानें सजने लगी हैं। किताब वाले खुद बिचौलिए की भूमिका में हैं, जो प्रकाशकों को स्कूलों तक लेकर जा रहे हैं। ड्रेस के बाद दुकान के मामले में भी एक दुकान अधिकांश बड़े स्कूलों की फेवरेट है। स्कूलों में ही किताब बेचने की भी तैयारी है। हर साल नए सत्र के दौरान किताबों, ड्रेस के नाम पर निजी स्कूल अभिभावकों की जेबें ढीली कर मोटा मुनाफा वसूलते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। शैक्षिक सत्र में सबसे ज्यादा लूट किताबों को लेकर मचती है। किताबों से हर साल स्कूल से लेकर पुस्तक विक्रेता तक लाखों रुपए कमाते हैं। सत्र शुरू होने से पहले ही विक्रेता बिचौलियों की भूमिका में आ जाते हैं। प्रकाशकों को लेकर स्कूलों तक विक्रेता स्वयं पहुंचते हैं। उसके बाद स्कूल वाले उसी प्रकाशक की किताबें स्कूलों में लगाते हैं फिर शुरू हो जाता है अभिभावकों की जेब तराशी का दौर। एनसीईआरटी की ओर से जो किताबें पैर्टन में दी जाती है उसके साथ ही जरुरी न होते हुए भी हेल्पिंग बुक लगा दी जाती है। अंग्रेजी की किताब के साथ हैंड राइटिंग सुधारने, ग्रामर की किताब दी जाती है। छोटी-छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चे एक ही किताब नहीं पढ़ पाते हैं, तो दूसरी किताबें केवल बोझ बढ़ाने के लिए होती हैं। हेल्पिंग बुक के साथ कॉपियां भी दी जाती हैं। यानी पब्लिक स्कूल अभिभावकों पर दोहरी मार करते हैं। कॉपी-किताब पर स्कूल के नाम का स्टीकर, सबके नाम पर पैसा वसूला जाता है। खास बात यह है कि नगर के अधिकांश स्कूलों का फेवरेट एक ही बुक सेलर है। दुकान के साथ स्कूलों में भी किताबों की दुकान सजाई जाती है। पहले से ही पूरा सेट तैयार किया जाता है। अभिभावकों को केवल बच्चे की कक्षा का नाम बताना होता है। अधिकांश स्कूलों में एक ही प्रकाशक की किताबों की सीरीज चलाई जाती है। कॉपी-किताब पर बकायदा स्कूल का नाम पहले ही दर्ज होता है। अभिभावकों को मजबूरी में इन्हीं दुकानों से किताबें खरीदनी पड़ती है।