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Home उधम सिंह नगर

उत्तराखंड का स्थापना दिवस! राज्य ने 23वें साल में किया प्रवेश, जानिए आंदोलन और उसके संघर्ष की कहानी

tapas vishvas by tapas vishvas
November 9, 2022
in उधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड, देश, राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य
उत्तराखंड का स्थापना दिवस! राज्य ने 23वें साल में किया प्रवेश, जानिए आंदोलन और उसके संघर्ष की कहानी
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नौ नवंबर की तारीख इतिहास में उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर दर्ज हैं। पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखण्ड को 27 वें राज्य के रूप में भारत गणराज्य में शामिल किया गया था। वर्ष 2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से पुकारा जाता था लेकिन जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।

उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे उत्तराखंड की सीमाएं उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हुई है. पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि कई प्राचीन धार्मिक स्थलों के साथ ही यह राज्य हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली देश की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना का उद्गम स्थल है। उत्तराखंड राज्य में बहुत समृद्ध प्राकृतिक संसाधन हैं जिनमें ग्लेशियर, नदियां, घने जंगल और बर्फ से ढकी पर्वत चोटियाँ शामिल हैं इसमें चार सबसे पवित्र और श्रद्धेय हिंदू मंदिर भी हैं जिन्हें उत्तराखंड के चार धाम के रूप में भी जाना जाता है. बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री. राज्य की राजधानी देहरादून है। उत्तराखंड नाम संस्कृत बोली से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘उत्तरी शहर’. इसका गठन उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार द्वारा उत्तराखंड क्रांति दल के लंबे संघर्ष के बाद किया गया था। जिसने पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया और अलग राज्य की मांग की थी। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के उत्तरांचल के रूप में गठित होने से पहले कई वर्षों तक संघर्ष चला था। बाद में 1 जनवरी 2007 को इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। यह राज्य संस्कृति, जातीयता और धर्म का समामेलन है और भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। उत्तराखंड के सीमावर्ती राज्यों में तिब्बत, नेपाल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।

भारत में पहाड़ी राज्य उत्तरांखड बनाने को लेकर प्रदेशवासियों को लंबे संघर्ष का एक दौर देखना पड़ा। कई आंदोलनों और शहादतों के बाद 9 नवंबर 2000 को आखिरकार उत्तर प्रदेश से पृथक होकर एक अलग पहाड़ी राज्य का गठन हुआ। इस पहाड़ी राज्य को बनाने में कई बड़े नेताओं और राज्य आंदोलनकारियों का अहम योगदान रहा है जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। उत्तराखंड को एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने के लिए कई दशकों तक संघर्ष करना पड़ा। पहली बार पहाड़ी क्षेत्र की तरफ से ही पहाड़ी राज्य बनाने की मांग हुई थी। 1897 में सबसे पहले अलग राज्य की मांग उठी थी। उस दौरान पहाड़ी क्षेत्र के लोगों ने तत्कालीन महारानी को बधाई संदेश भेजा था। इस संदेश के साथ इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग भी की गई थी। जिसके बाद साल 1923 में जब उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत का हिस्सा हुआ करता था उस दौरान संयुक्त प्रांत के राज्यपाल को भी अलग पहाड़ी प्रदेश बनाने की मांग को लेकर ज्ञापन भेजा गया। जिससे कि पहाड़ की आवाज को सबके सामने रखा जाए। इसके बाद साल 1928 में कांग्रेस के मंच पर अलग पहाड़ी राज्य बनने की मांग रखी गयी थी। यही नहीं साल 1938 में श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अलग पहाड़ी राज्य बनाने का समर्थन किया था। इसके बाद भी जब पृथक राज्य नहीं बना तो साल 1946 में कुमाऊं के बद्रीदत्त पांडेय ने एक अलग प्रशासनिक इकाई के रूप में गठन की मांग की थी। इसके साथ ही करीब साल 1950 से ही पहाड़ी क्षेत्र एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर हिमाचल प्रदेश के साथ मिलकर ‘पर्वतीय जन विकास समिति’ के माध्यम से संघर्ष शुरू हुआ। साल 1979 में अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ। जिसके बाद पहाड़ी राज्य बनाने की मांग ने तूल पकड़ा और संघर्ष तेज हो गया. इसके बाद 1994 में अलग राज्य बनाने की मांग को और गति मिली। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ‘कौशिक समिति’ का गठन किया। इसके बाद 9 नवंबर 2000 में एक अलग पहाड़ी राज्य बना। पहाड़ी राज्य बनाने को लेकर एक लंबा संघर्ष चला जिसके लिए कई आंदोलन किये गये कई मार्च निकाले गये अलग पहाड़ी प्रदेश के लिए 42 आंदोलनकारियों को शहादत देनी पड़ी। अनगिनत आंदोलनकारी घायल हुए। पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर उस समय इतना जुनून था कि महिलाएं, बुजुर्ग यहां तक की स्कूली बच्चों तक ने आंदोलन में भाग लिया। उत्तराखंड राज्य गठन में तब हम बड़े नेताओं और आंदोलनकारियों के साथ ही पहाड़ी क्षेत्र की महिलाओं का भी अहम योगदान रहा। उत्तराखंड राज्य बनने से पहले गौरा देवी ने वृक्षों के कटान को रोकने के लिए चिपको आंदोलन शुरू किया था जो लंबे समय तक चला। इसके बाद जब अलग राज्य बनने को लेकर संघर्ष चल रहा था तो पहाड़ी क्षेत्र की महिलाओं ने भी इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस संघर्ष में कई महिलाओं ने अपनी शहादत दी थी जिन्हें आज भी बड़े गर्व से याद किया जाता है।

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