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ये कैसा न्याय! उपभोक्ता प्रतितोष आयोग में न्याय की गुहार लगाना पीड़ित को पड़ा भारी, न्याय देने के बदले पीड़ित उपभोक्ता पर ही डाल दिया हजारों रुपए के जुर्माना का बोझ

News Desk by News Desk
May 31, 2022
in उधम सिंह नगर, अपराध, उत्तराखण्ड, देश, राजनीति
ये कैसा न्याय! उपभोक्ता प्रतितोष आयोग में न्याय की गुहार लगाना पीड़ित को पड़ा भारी, न्याय देने के बदले पीड़ित उपभोक्ता पर ही डाल दिया हजारों रुपए के जुर्माना का बोझ
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उत्तराखंड से एक बड़ी विचित्र और चौंकाने वाली खबर सामने आयी है। जहां जिला उपभोक्ता प्रतितोष आयोग ने 28 मई 2022 को एक परिवाद में फैसला सुनाया जिसमें आयोग ने पीड़ित सुनील मेहता के परिवाद को खारिज करते हुए पीड़ित पर ही पच्चीस हजार का जुर्माना लगा दिया।

आपको बता दे 28 मई 2022 को एक परिवाद में फैसला सुनाया जिसमें आयोग ने पीड़ित सुनील मेहता के परिवाद को खारिज करते हुए पीड़ित पर ही पच्चीस हजार का जुर्माना लगा दिया । मामला 2019 का है जब सुनील मेहता अपनी कार इकोस्पोर्ट से 22 अप्रैल 2019 की रात्रि करीब 10:30 बजे हल्द्वानी से पंतनगर जा रहे थे तभी मोटा हल्दू के समीप सामने से एक कार( HR 26-A 3396) उल्टी दिशा में अनियंत्रित होकर पीड़ित की कार से टकरा गयी, टक्कर काफी जबर्दस्त थी जिस वजह से दोनों कारें पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी और कार में बैठे व्यक्ति घायल हो गए जिन्हें अन्य साथियों की मदद से अस्पताल पहुंचाया गया मौके पर कुछ ही देर में नजदीकी पुलिस चौकी हल्दुचौड़ से कुछ पुलिसकर्मी पहुंचे जिन्होने ट्रैफिक खुलवाने के लिए क्रेन की मदद से दोनों कारों को पुलिस चौकी हल्दुचौड़ में खड़ा करवा दिया । दूसरे दिन सुनील मेहता क्षतिग्रस्त कार को लेने पुलिस चौकी पहुंचे और प्राथमिकी दर्ज़ करने की बात की लेकिन पुलिस ने घायलों का हवाला देते हुए कहा कि प्राथमिकी दर्ज़ करवाने की आवश्यकता नहीं है तकनीकी मुआयना करवाने के बाद आपको कार सौप दी जाएगी तब तक के लिए कार को चौकी में ही छोड़ दें जिस पर पीड़ित सुनील मेहता वापस चले गए । चौदह दिनों बाद पुलिस के द्वारा तकनीकी मुआयना करवाकर सुनील मेहता को कार 05 मई 2019 को सुपुर्द की गयी जिसके बाद सुनील मेहता कार को फोर्ड शोरूम हल्द्वानी ले गए जिस दिन कार फ्रॉड शो रूम जमा की गयी उस दिन शनिवार था । पीड़ित की कार इफको टोकियो कंपनी से बीमित थी जिसका बीमा 29 अप्रैल 2019 को समाप्त होने वाला था और 29 अप्रैल 2019 से लेकर 28 अप्रैल 2020 तक का अग्रिम बीमा भी पीड़ित के द्वारा करवाया गया था लिहाज़ा फोर्ड शोरूम में क्लैम फार्म भरा गया जिस पर इफ़्को टोकियो कंपनी के सर्वेयर संजय बेलवाल के द्वारा कार का पूरा निरीक्षण किया गया जिस पर संजय बेलवाल ने कार के फुल डैमेज़ की रिपोर्ट कंपनी में सौप दी , चूंकि कार को रिपेयर करने का खर्चा बीमित राशि से ज्यादा आ रहा था इसलिए कार का क्लैम टोटल लॉस पर किया गया । कुछ माह बीतने पर बीमा कंपनी ने पीड़ित को क्लैम देने से इंकार कर दिया और डाक के माध्यम से 16 दिन की देरी का कारण पूछा और दुर्घटना की सूचना बीमा कंपनी को नहीं देने की बात कही जिस पर पीड़ित ने पुलिस चौकी में 14 दिन तक खड़ी कार का पुलिस प्रमाण पत्र भेजा और यह भी बताया कि 5 मई 2019 को शनिवार था जिस दिन फोर्ड शोरूम में कार को पुलिस चौकी से उठा कर क्रेन के माध्यम से खड़ा किया गया और 2 दिन पश्चात सोमवार को सर्वेयर संजय बेलवाल के द्वारा सर्वे किया गया । साथ ही बताया कि दुर्घटना के अगले दिन इफ़्को टोकियो बीमा कंपनी के टोल फ्री नंबर पर कॉल करके दुर्घटना की सूचना पीड़ित के द्वारा दे दी गयी थी लेकिन इफ़्को टोकियो जनरल बीमा कंपनी के द्वारा दोबारा फिर से दस्तावेजों को मांगा गया जिस पर फिर पीड़ित ने सभी दस्तावेज़ दोबार बीमा कंपनी को प्रेषित किए लेकिन छ: माह बीतने के बाद भी क्लैम नहीं दिया गया जब पीड़ित के द्वारा कंपनी के प्रबन्धक नितिन वशिष्ठ से बात की तो उन्होने पीड़ित को ढाई लाख का क्लैम समझौता ऑफर दिया जिसे पीड़ित के द्वारा नकार दिया गया और पीड़ित नैनीताल उपभोक्ता प्रतितोष आयोग की शरण में पहुंचा जहां परिवाद दाखिल किया गया । कुछ माह तक तो उपभोक्ता आयोग का कोरम पूरा न होने के कारण परिवाद लंबित होता रहा और फिर कोरोना काल के चलते आयोग सुनवाई नहीं कर सका और 2022 में जब आयोग का कोरम पूरा हुआ तो सुनवाई हुई इफ़्को टोकियो बीमा कंपनी के द्वारा क्लैम न देने का कारण पीड़ित का दुर्घटना की सूचना न देना और 16 दिनों कि देरी से कार का सर्वे करना बताया जिस पर आयोग ने पीड़ित को 16 दिनों की देरी के लिए पुलिस प्रमाण पत्र देने की बात कही जिस पर पीड़ित के द्वारा 14 दिनों तक पुलिस कस्टडी में खड़ी कार और दुर्घटना का पूरा विवरण पुलिस जीडी की नकल सूचना के अधिकार अधिनियम का उपयोग करते हुए आयोग को जमा करवा दी जिस पर स्पष्ट है कि 14 दिनों तक कार पुलिस के द्वारा चौकी में ही खड़ी रखी गयी थी और दो दिनों की देरी शनिवार और रविवार होने के कारण बीमा कंपनी ने सर्वे नहीं किया ।
नैनीताल उपभोक्ता प्रतितोष आयोग ने पीड़ित और इफ़्को टोकियों को सुनने के बाद केस यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पीड़ित को उपभोक्ता प्रतितोष आयोग तब आना चाहिए था जब बीमा कंपनी क्लैम को निरस्त कर देती और पीड़ित पर पच्चीस हजार का जुर्माना इसलिए लगा दिया क्योंकि पीड़ित ने आयोग का समय बर्बाद किया ।

अधिवक्ता राजेन्द्र पंत के अनुसार दो कारों की आमने सामने भिड़ंत होने के कारण पीड़ित की कार दुर्घटना ग्रस्त हुई थी जिसे पुलिस और बीमा कंपनी का सर्वेयर संजय बेलवाल प्रमाणित करते है और चौदह दिनों की देरी का कारण भी पुलिस ने आरटीआई का जवाब देते हुए स्पष्ट रूप से प्रमाणित कर दिया है और रही सूचना देने की बात तो दुर्घटना के वक़्त अक्सर ऐसी गलती हो जाती है क्योंकि उस वक़्त घायलों का इलाज़ करवाना प्राथमिकता रहती है । लेकिन पीड़ित ने अपने बयान में कहा है कि अगले दिन उसने टोल फ्री नंबर पर सूचना दे दी थी जिसे बीमा कंपनी द्वारा टाटा कॉल सेंटर का हवाला देते हुए मौखिक रूप से आयोग के सामने अमान्य करार दिया गया लेकिन आयोग ने उसे बिना कॉल विवरण के स्वीकार कर लिया । जिला उपभोक्ता प्रतितोष आयोग के द्वारा उल्टा पीड़ित को ही दोषी ठहराते हुए उसके परिवाद को अपरिपक्व घोषित कर उपभोक्ता/परिवादी पर ही पच्चीस हजार का जुर्माना लगा दिया जो न्यायोचित्त नही है इसके लिए पीड़ित के द्वारा राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग में अपील की जा सकती है ।

नैनीताल उपभोक्ता प्रतितोष आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया जिस पर एक स्थानीय वेब पोर्टल ने बिना पत्रकार का पक्ष जाने एकतरफा प्रैस नोट प्रकाशित कर दिया जबकि मामला उपभोक्ता आयोग से जुड़ा हुआ था । प्रेस नोट में आयोग के द्वारा मामले को एकतरफा करके मीडिया में भेजा गया जिसे स्वयंभू पत्रकार के द्वारा पत्रकारिता के मापदण्डों को ताक में रखकर प्रकाशित कर दिया गया एक पल भी उनको ये ख्याल नहीं आया कि पीड़ित उपभोक्ता का पक्ष भी जानना चाहिए प्रेस नोट में कहा गया है कि सुनील मेहता के पक्ष में फैसला न देने पर सुनील मेहता के द्वारा बिना अनुमति के प्रवेश किया गया और पत्रकारिता का रौब दिखाकर अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों के साथ अभद्रता की गयी ।

जब इस मामले में सुनील मेहता से बात की गयी तो उन्होने आयोग के द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से नकारते हुए मीडिया को बताया कि जब वह आदेश की प्रति लेने कार्यालय पहुंचे तो कार्यालय में सभी मौजूद थे एक पत्रकार होने के नाते अध्यक्ष और सदस्यों से विनम्रता पूर्वक पूछा गया कि पुलिस रपट संख्या से लेकर सभी दस्तावेज़ जो भी माननीय आयोग ने मांगे थे सभी हमने जमा किए बावजूद आपने उपभोक्ता पर ही जुर्माना लगा दिया जबकि जो तथ्यों पर आधारित होकर आपने निर्णय सुनाया है वो तथ्य आपको परिवाद दाखिल करते वक़्त से पता थे तो इस पर माननीय अध्यक्ष ने कहा कि पहले जो भी आयोग का अध्यक्ष रहा उसने क्या किया क्या नहीं उससे हमारा कोई वास्ता नहीं है और माननीय अध्यक्ष ने कहा कि बीमा कंपनी ने तो क्लैम खारिज नहीं किया और जब तक क्लैम खारिज नहीं होता तो हम सुनवाई नहीं कर सकते । इस पर सुनील मेहता ने कहा कि ढाई वर्ष हो चुके है तब से फोर्ड शो रूम जहां बीमा कंपनी के द्वारा कार खड़ी की गयी है शोरूम का प्रतिदिन किराया 250 रुपए के हिसाब से लाखों रुपए बन चुके है और कार पर मासिक लोन किस्त अलग से बैंक में जमा होती है तब से अभी तक एक उपभोक्ता के रूप में बीमा कंपनी के द्वारा उनका उत्पीड़न होता हुआ आया है इस पर माननीय अध्यक्ष और सदस्यों ने चुप्पी साध ली, जिस पर सुनील मेहता के कहा कि इस इस निर्णय के खिलाफ हम राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग जाएंगे और इस तरह के निर्णय की पूरी प्रक्रिया को एक पत्रकार होने के नाते जनता के सामने रखेंगे जिस पर आयोग के अध्यक्ष भड़क गए और उन्होने सुनील मेहता को आयोग के अध्यक्ष होने का रौब झाड़ डाला।

बतौर सुनील मेहता माननीय आयोग में ढाई वर्ष तक केस चला और केस तब से चल रहा है जब कोरम ही पूरा नही था और जब कोरम पूरा हुआ तो सुनवाई शुरू हुई लेकिन पिछले छ महीनों में कई बार बीमा कंपनी को साक्ष्य उपलब्ध करवाने को कई बार अंतिम अवसर आयोग के द्वारा दिया गया जो आयोग की पत्रावली से प्रतीत भी होता है केस में ऐसे कई पहलू है जिन पर गौर करना आवश्यक है और जिसके लिए राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोग में अपील की जाएगी और उन्हे पूरा विश्वास है कि एक उपभोक्ता होने के नाते उन्हे न्याय जरूर मिलेगा ।

आपको बताते चले उपभोक्ता फोरम का गठन इसलिए किया गया था कि न्यायिक प्रक्रियाओं की जटिलता के चलते किसी भी उपभोक्ता को न्याय से वंचित नहीं रहना पड़े इसलिए पहले उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जिला जज़ नामित होते थे या फिर सेवानिव्रत्त जजों को अध्यक्ष बनाया जाता था और आम जनता से दो लोग सदस्यों के रूप में चयनित किए जाते थे लेकिन वर्तमान में आयोग में अध्यक्ष और जजों की नियुक्ति को लेकर राजनैतिक दखल रहता है जिसका असर फैसलों पर पड़ता है और उपभोक्ता को न्याय मिलने की जगह जुर्माना देना पड़ जाता है ।

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