उत्तराखंड में आधे से ज्यादा प्रदेश के बच्चे खून की कमी से जूझ रहे हैं। प्रदेश में विशेषकर उत्तरकाशी, हरिद्वार व जनपद ऊधम सिंह नगर में स्थिति सबसे खराब है। पर प्रदेश में यह हाल तब है जब बीते चार वर्ष में कुपोषण से निपटने को राज्य में आठ से ज्यादा योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इन योजनाओं पर हर साल औसतन 250 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो रहे हैं।
जानकारी के अनुसार यह खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवीं रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के 12169 घरों की 13280 महिलाओं और 1586 पुरुषों से बातचीत के आधार पर यह अध्ययन किया गया। सर्वे में 5 वर्ष तक के 18% बच्चों का वजन सामान्य से कम पाया गया जबकि 56.8% बच्चों में खून की कमी पाई गई। उत्तरकाशी में तो 73.6% बच्चे एनिमिक हैं। हरिद्वार, यूएसनगर, चमोली, टिहरी में 60% से ज्यादा बच्चों में खून की कमी है। इस मामले में सीमांत जिलों पिथौरागढ़ (36.2%), चंपावत(43.1%) और बागेश्वर (43.7%) की स्थिति उनसे काफी ठीक है। राज्य में 15 से 47वर्ष आयुवर्ग की 42.4% गर्भवती महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं। इस मामले में स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कि आहार में आयरन की कमी व पर्याप्त पौष्टिक भोजन नहीं मिलना खून की कमी का सबसे बड़ा कारण हैं। आनुवांशिकता और कुछ रोग भी इसका कारण हो सकते हैं।
आपको बता दे कि राज्य में बीते चार वर्ष में राष्ट्रीय पोषण मिशन, पीएम मातृ वंदना योजना, सीएम बाल पोषण योजना, सीएम आंचल अमृत योजना, सीएम सौभाग्यवती योजना, सीएम वात्सल्य योजना, सीएम महिला पोषण योजना, किशोरी बालिका योजना संचालित हैं। बीते वित्त वर्ष में बच्चों व महिलाओं के पोषण के लिए 563.94 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। शिशु मृत्यु दर और नियोनेटल रेट (प्रति हजार बच्चों के जन्म पर 28 दिन के भीतर
होने वाली मौत की संख्या) पड़ोसी राज्य हिमाचल से ज्यादा है। उत्तराखंड के साथ बने राज्य झारखंड और छत्तीसगढ़ नियोनेटल रेट के मामले में बेहतर हैं।